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दुःख की स्मृति

dukha ki smriti

शाम्भवी तिवारी

अन्य

अन्य

शाम्भवी तिवारी

दुःख की स्मृति

शाम्भवी तिवारी

और अधिकशाम्भवी तिवारी

    दुःख आँखों पर कोहनियाँ टिकाए बैठा है

    उसके बाल होंठों के बीच यूँ पैवस्त हैं

    कि उन्हें खुलने नहीं देते

    दाँतों के बीच फँस चुकी सिसकियाँ छटपटाने लगी हैं

    ज़ुकाम की पहली ख़राश के तौर पर

    एक चीख़ जीभ तक आ-आकर लौट जा रही है।

    दुःख को एक मृत शरीर के स्पर्श की स्मृति है

    और आजन्म स्मृति बन जाना ही दुःख का परम ध्येय

    तो उसने अकड़ ली हैं अपनी बाँहों की नसें

    और निर्वस्त्र होकर ठंडा पड़ चुका है

    मृत्यु के स्पर्श के परे उसे कुछ स्मरण नहीं।

    आँखों पर कोहनियाँ टिकाए बैठा दुःख यथावत मरणासन्न हो चुका है

    उसकी देह कुतरने चढ़ आईं चींटियों की क़तारें

    आँखों के तिमिर में ग़ोते लगाती जा रही हैं।

    भीतर कहीं छिड़ चुका है—

    सिसकियों, चीख़ों और चींटियों के बीच महान संघर्ष

    और मृत दुःख की स्मृतियों का स्पर्श समेटे

    मैं तुम्हारे कंधों पर कोहनियाँ टिकाने का स्थान खोज रहा हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शाम्भवी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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