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अबकी दीवाली

abki diwali

अबुल हाशिम ख़ान

अन्य

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अबुल हाशिम ख़ान

अबकी दीवाली

अबुल हाशिम ख़ान

और अधिकअबुल हाशिम ख़ान

    विवेक सर आइए

    मैंने भी दुकान लगा रखी है

    फ़ुटपाथ पे सजा रखी है

    बहुत सारे खिलौने भरे हैं इसमें

    पर मेरे खिलौने चमकते नहीं साहिब

    ये गुमसुम से हैं चहकते नहीं साहिब

    रेल मोटर से भागेंगे नहीं

    रिमोट सेल से नाचेंगे नहीं

    पर मिट्टी के इन दियों में

    गुल्लकों हाथी घोडों में

    एक परिवार की आस बँधी है

    हम ग़ुरबत के मारों की

    ज़िंदगी भूख प्यास बँधी है

    अब तो मिट्टी भी मयस्सर नहीं

    हम खिलौने वालों को

    मैं भी शहज़ादी हूँ

    अपने बूढ़े माँ बाप की

    आपकी विनी की तरह

    एक भाई भी है मेरा

    आपके आदित्य के जैसा

    हम भी बाज़ार में आए हैं

    खिलौने लेकर

    ले लीजिए आप इनको

    आधे पौने देकर

    हम लोग भी घर जाते

    दीवाली हो जाती

    अमावस की रात ये

    उजियाली हो जाती

    हम भी ले जाते

    आदित्य के लिए मिठाई

    हमारी आस में बेसुध

    बैठी होगी मेरी माई

    अब तक हमें कोई

    ख़रीदार मिला

    दो चार सौ तो दूर

    आना तो चार मिला

    बड़ी मायूस हमारी

    दीवाली होगी

    क्या अबके अमावस भी

    वैसे ही काली होगी?

    स्रोत :
    • रचनाकार : अबुल हाशिम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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