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दस्तक

dastak

स्वप्निल श्रीवास्तव

अन्य

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और अधिकस्वप्निल श्रीवास्तव

    जब दरवाज़े पर नहीं लगी थी कॉलबेल

    दस्तक देने का अपना मज़ा होता था

    हम अपने-अपने ढंग से देते थे दस्तक

    और अपने आने की धुन बजाते थे

    संगीतकार दरवाज़े को तबले की तरह बजाते थे

    गायक मित्रों को दस्तक से ज़्यादा

    अपनी आवाज़ पर भरोसा होता था

    उनकी आवाज़ दस्तक से ज्यादा तेज़ होती थी

    दरवाज़े हमारे आने की आहट को आंक लेते थे

    वे धीमे-धीमे खुलने लगते थे

    वे क्या दिन थे जब दरवाज़ों पर परदे नहीं थे

    नहीं थी कर्कश घंटियाँ

    तब कितनी आसान थी हमारी आवाजाही

    इन घंटियों ने हमारी आदत को बदल दिया है

    इन्हें छूते हुए डर लगता है...

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्वप्निल श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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