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सब कुछ नहीं अँधेरा

sab kuch nahin andhera

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

प्रतिभा शतपथी

अन्य

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प्रतिभा शतपथी

सब कुछ नहीं अँधेरा

प्रतिभा शतपथी

और अधिकप्रतिभा शतपथी

    गोधूलि के नक्षत्र की तरह

    अँकुराती आशा की ओर देखो

    अँधेरा ही नहीं होता सब-कुछ

    अँधेरे की गुमसुम साँसों में

    अपनी अनावृत उज्ज्वल देह

    खोल देगी सुबह

    कोटर में बैठा ऊँघता कबूतर

    पंख झाड़ बुनता चला जाएगा चंचलता

    सारे आसमान में—

    फटी ज़मीन के भीतर जमे अँधेरे से

    सिर उठाएगा नन्हा फूल

    भय

    टूटी पंखुड़ियों के गुच्छे-सा

    गिर पड़ेगा नीचे

    यहाँ तक कि

    झाड़ियों में पड़े बीज के भीतर से

    चमक उठेगा सूर्य

    रुक जाएगा घड़ी-भर पथिक

    विश्वास करो,

    सब-कुछ नहीं होता अँधेरा।

    अँधेरे ने मिटा दिया है नाम अगर

    फिर से लिख दो

    कहीं कहीं

    अंगारों पर चलो अगर

    सिर उठाकर चलो,

    कीचड़ में चलो अगर

    धड़कती आत्मा-बिंदु को

    मुट्ठी में जकड़ लो,

    ख़ूब गहराई में कहीं

    अगर ख़ून बहता है

    आँसू बहता है

    पोंछो मत

    अनंत जलराशि में कहीं

    नन्हे द्वीप-सा

    काँपता है दिल अगर

    टूट मत जाना

    सुंदर और झूठी है

    चकाचौंध करती यह दुनिया

    पानी के बुलबुलों के

    क्षणिक नृत्य में

    एक अमृत-जलकुंभ

    पाया है अगर

    मिथ्या मत समझो उसे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधा-आधा नक्षत्र (पृष्ठ 90)
    • रचनाकार : प्रतिभा शतपथी
    • प्रकाशन : मेघा बुक्स

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