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दरिया और प्यास

dariya aur pyas

अनुवाद : रामसिंह चाहल

बलवीर परवाना

अन्य

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बलवीर परवाना

दरिया और प्यास

बलवीर परवाना

और अधिकबलवीर परवाना

    दरिया के किनारे रहकर भी

    प्यासा ही रहा

    रहा तरसता, एक-एक बूंद के लिए

    रूह में फैला हुआ तपता रेगिस्तान

    दूर-दूर तक कोई झाड़ी

    वृक्ष, कोई परिंदा

    भटकता रहा मन और

    तड़पता रहा पल-पल

    नदी के किनारे रहकर

    प्यासा रहना बड़ा मुश्किल होता है

    असंभव

    इससे तो अच्छा

    कोई मरुस्थल में ही रहता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओ पंखुरी (पृष्ठ 70)
    • संपादक : रामसिंह चाहल
    • रचनाकार : बलवीर परवाना
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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