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दांते की समाधि के पास

dante ki samadhi ke paas

निकोलाय ज़बोलोत्स्की

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निकोलाय ज़बोलोत्स्की

दांते की समाधि के पास

निकोलाय ज़बोलोत्स्की

 

फ़लोरैस मेरे लिए जैसे सौतेली माँ रही है
मेरी इच्छा तो रवेन्ना1इटली का नगर जहाँ दांते की समाधि है। में रहने की थी
ओ राही ज़िक्र न करना धोखे का
स्वयं मृत्यु के दाग़ लगने देना उसके कार्यों पर।

मेरी सफ़ेद क़ब्र के ऊपर
गुटरगूँ करता रहा है प्यारा-सा कबूतर
मातृभूमि याद आती है आज भी
मैं निष्ठावान हूँ केवल उसी के प्रति।

यात्रा पर टूटी सारंगी को नहीं ले जाते
वह मातृप्राय होती है अपने घर में ही
और मेरे दु:ख, तोस्काना,
क्यों चूम रही है मेरा अनाथ चेहरा।

उड़ जाता है कबूतर छत पर से
उसे डर लग रहा है किसी से
किसी पराए वायुयान की दुष्ट छाया
अंकित कर रही है अपना दायरा शहर के ऊपर।
ओ घड़ियाली, बजाता जा अपनी घंटियाँ।
भूलना नहीं यह संसार डूबा है ख़ून की झाग में।
मैं रवेन्ना में रहना चाहता था
लेकिन मुझे आश्रय नहीं दिया उसने। 

     
स्रोत :
  • पुस्तक : नियति की अज्ञात इच्छाएँ (पृष्ठ 223)
  • रचनाकार : निकोलाय ज़बोलोत्स्की
  • प्रकाशन : प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली
  • संस्करण : 2016

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