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दंतकथा

dantaktha

पंकज सिंह

अन्य

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पंकज सिंह

दंतकथा

पंकज सिंह

और अधिकपंकज सिंह

    नींद के धुँध भरे अजायबघर में ज्यों

    अकस्मात शुरू हो बेतुका

    एक ख़तरनाक सपना शोर-भरा

    आए तुम वैसे ही

    उम्दा अँग्रेज़ी बोलते कुर्ते पर शाल सँभाले

    दसों दिशाओं में गूँजते अध्यादेशों के

    मनहूस संगीत की छाया में

    हे चतुर सुजान!

    उड़ते हो कोटि-कोटि जनगण पर

    किसी आणविक विस्फोट से उगे बादल सरीखे

    मन पर

    तुम्हें बहुतों तक ले जाती हैं दंतकथाएँ

    जगह-जगह पहुँचाते हैं कारकुनों के झूठ

    बारूदी हथियारों के बीच सुरक्षित पुरुष विशेष!

    छावनियों के परम पिता!

    रात-दिन गाते हैं स्तुति रेडियो-दूरदर्शन

    सुनाते दिखाते तुम्हारी सुंदर छवि पर चिंता

    कहते हैं धूल में धूल होते गँवार

    'हम मर गए, महाराज

    हम हार गए महाराज अपने ही पेट से'

    वे लड़खड़ाते हैं

    बार-बार एक ही कथा दुहराते हैं

    ‘मर गए हम, मर गए महाराज

    पिस गए महाजन की चक्की में'

    तुम कहते हो ‘देखो अब गया हूँ मैं

    सब ठीक हो जाएगा...'

    छँटता है जब

    धीरे-धीरे शोर का उत्सव का कोहरा

    रह जाते हैं बस

    लौट चुकी गाड़ियों के पहियों के निशान

    और घरों-दीवारों-बंदनवारों पर

    बेशर्म रंग

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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