शायद आप जानते हों

shayad aap jante hon

ओमप्रकाश वाल्मीकि

ओमप्रकाश वाल्मीकि

शायद आप जानते हों

ओमप्रकाश वाल्मीकि

यज्ञों में पशुओं की बलि चढ़ाना

किस संस्कृति के प्रतीक हैं

मैं नहीं जानता

शायद आप जानते हों!

अर्थ बदलकर शब्दों के

गढ़ लेना असंख्य प्रतीक,

ऋग्वेद के कृष्ण को

महाभारत में फ़िट करके

हो जाना आत्मविभोर

सो जाना गहरी नींद में

देख नहीं पाना सपनों में

पन्ने फाड़कर बाहर आती क्रूर हँसी

जो चुपके-चुपके दीमक की तरह

खा गई तहख़ानों में सहेजकर

रखी संस्कृति को

संस्कृति और संस्कृत में

क्या संबंध है

मैं नहीं जानता

शायद आप जानते हों!

श्मशानों के भूत-पिशाच

मरघट का वैराग्य नहीं जानते

भवानी का खप्पर भी अभी ख़ाली है

गले में नरमुंड डालकर जब

वह नृत्य करेगी

जलती इमारत की छत से

छलाँग लगाकर आत्महत्या भी नहीं कर पाओगे

तुम्हारे रचे शब्द

तुम्हें ही डसेंगे साँप बनकर

गंगा किनारे

कोई वट-वृक्ष ढूँढ़कर

भागवत का पाठ कर लो

आत्मतुष्टि के लिए

कहीं अकाल मृत्यु के बाद

भयभीत आत्मा

भटकते-भटकते

किसी कुत्ते या सूअर की मृत देह में

प्रवेश कर जाए

या फिर पुनर्जन्म की लालसा में

किसी डोम या चूहड़े के घर

पैदा हो जाए!

चूहड़े की, डोम की आत्मा

ब्रह्म का अंश क्यों नहीं है

मैं नहीं जानता

शायद आप जानते हों!

स्रोत :
  • पुस्तक : दलित निर्वाचित कविताएँ (पृष्ठ 63)
  • संपादक : कँवल भारती
  • रचनाकार : ओमप्रकाश वाल्मीकि
  • प्रकाशन : इतिहासबोध प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

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