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दहशत

dahshat

वसीम अकरम

अन्य

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वसीम अकरम

दहशत

वसीम अकरम

और अधिकवसीम अकरम

    असलम ने

    अपनी बेटी के लिए

    गुड़िया ख़रीदनी थी,

    रामदीन ने ख़ुद के लिए

    छड़ी ख़रीदनी थी,

    रहीम साइकिल पर

    फुग्गे लिए उड़ा जा रहा था,

    और दशरथ काका

    अभी-अभी पोते के साथ

    ऑटो से उतरे थे

    उन्हे दो ही चीज़ ख़रीदनी थी

    पोते के लिए जलेबी

    और ख़ुद के लिए चिलम।

    पापा जी बेटे के लिए

    नीली-पीली पगड़ी ख़रीद रहे थे

    और डिसूजा अंकल

    अपनी बीवी के साथ

    हॉट कॉफ़ी की चुस्कियाँ ले रहे थे

    कि तभी

    एक ज़ोरदार धमाका हुआ

    ख़ौफ़नाक! दहशतनाक!

    दीवारों पर

    ख़ून के छींटों ने

    दहशत की दास्ताँ लिख दी

    और सड़क पर बिखरे

    मांस के लोथड़ों ने

    ख़ून के आँसू में डूबकर

    मज़हब का रोना रोया...

    कुछ को हिंदू होने पर गर्व हैं

    तो कुछ को मुस्लिम होने पर

    मगर किसी को भी

    इंसान होने पर गर्व नहीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वसीम अकरम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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