वृक्ष मनुष्य

vriksh manushya

दर्शन बुट्टर

दर्शन बुट्टर

वृक्ष मनुष्य

दर्शन बुट्टर

जिज्ञासा

माना कि हम 
पालने से श्मशान तक 
वृक्षों में की साँस लेते

माना कि वृक्ष 
अपनी छाँव नहीं समेटते 
धूप से रूठ कर भी 
और अपने साये 
रात की ड्योढ़ी तक ले जाते

यह अपनी देह पर गाँव बसा कर भी 
एकाकी रहते 
जन्म-जन्म से संतापे रहते

वृक्ष डोल जाते, 
परिंदों का मर्सिया सुन कर 
दहल जाते शिकारियों की गुफ़्तगू सुन कर 
वृक्ष, हर भाषा समझते मनुष्य की

यह भी माना कि वृक्ष 
हमारे साथ दु:ख-सुख बँटाते 
हमारे अश्रु 
अपनी आँखों से बहातें

पर धरती भी तो 
इनकी जड़ें सँभाल कर रखती
हवा भी 
उदास पत्तों को गाना सिखाती है

कोयल, इसकी फ़िज़ा में तरंग छेड़ती 
बारिश भी तो 
इसको मल-मल कर नहलाती

वृक्षों के संग रह कर निर्लिप्त क्यों है 
चुभा कर कभी काँटों जैसा 
त्रिवेणी तले बैठ कर बरगद हो गया है 
विचराकर कभी गुलमुहर की तरह भी...


गुरुदेव

वृक्ष, अपना ठिकाना 
दिशाओं से नहीं छिपाते 
अपनी कथा 
किताबों को नहीं सुनाते

पर कितनी ही किताबें 
इनके वजूद में धड़कतीं 
कितनी ही बँसरियाँ 
इनकी टहनियों में से कूकतीं
कितनी ही पिपहरियाँ 
इनके पत्तों में से बोलतीं

वृक्ष 
अपनी शाखाएँ 
चुने पत्तों के नाम नहीं करते
सदा प्रतीक्षित रहते 
परिंदों...राहियों...झूलों के लिए

वृक्ष 
कुल्हाड़ियों को भी बेंट बख़्शते  
हमारे मनों की मैल खँगाल कर 
अंततः आगोश में लेते सब को

वृक्षों की दरवेशी 
शीश देकर भी आशीष देती 
फ़क़ीर होकर भी बख़्शीश देती

दिखते और अदृश्य रंग भी? 
त्रिवेणी के तीनों रंगों में
पर हम 
नहीं अलग कर सके परतें 
तीनों परछाईयों को 

कोई भी वृक्ष 
महज़ साया नहीं होता

किस गुलमुहर की बात करती है तू... 

स्रोत :
  • पुस्तक : महाकंपन (पृष्ठ 42)
  • रचनाकार : दर्शन बुट्टर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2016
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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