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मेरा दौर

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रचित

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मेरा दौर

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और अधिकरचित

    मैं ऐसे दौर में पैदा हुआ

    जब करने को कुछ नहीं

    या कुछ करने का कोई फ़ायदा नहीं।

    इसलिए मैं सिर्फ़ फ़ेसबुक पर लिखता हूँ।

    मेरे हिस्से का विरोध कर गए भगत सिंह

    प्रेम कर गया मजनूँ

    मेरे हिस्से की गोली चला गए चे ग्वेरा,

    खा गए गांधी

    मेरे हिस्से की शहादत को हो चुके

    एक सौ एक साल जलियाँवाला बाग़ में।

    मेरे हिस्से की क्रांति कर गए महात्मा बुद्ध,

    त्याग श्रीराम।

    मेरे हिस्से की सज़ा दे दी गई दो हज़ार साल पहले।

    अब किसी से बिछड़ना बुरा नहीं लगता

    कि मेरे हिस्से की हिजरत हुए हो गए चौदह सौ साल।

    और मैं हूँ कि कुछ नहीं कर पाता इन लोगों से—

    ईर्ष्या के सिवाय

    जिनके पास कितना कुछ नया था करने के लिए।

    मैं सिर्फ़ फ़ेसबुक पर लिखता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रचित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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