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आत्म-स्वीकृति

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आत्म-स्वीकृति

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और अधिकरचित

    ब्रेकअप के लिए

    मज़बूत कारण मिल पाने की वजह से

    हम प्रेम में थे

    हम फ़रहाद के फूफा थे

    मजनूँ के मामा

    और 007 जेम्स बॉण्ड भी

    हम इतने हल्के थे कि

    हर फ़िल्म के हीरो में

    हमें अपना अक्स दिखता था

    हम जॉर्डन भी थे

    वेद भी

    सिड भी और रॉकेट सिंह भी

    और हम ही थे

    'कैसी तेरी ख़ुदगर्ज़ी...'

    सुनते हुए बनी

    हम किसी ग्रैंड एंट्री के साथ

    'नाक का नगीना देखा

    कान में पुदीना देखा...'

    गाते हुए कहीं से लौटना चाहते थे

    लेकिन हम जहाँ थे

    वहाँ से जाना नहीं चाहते थे कि लौट सकें

    सच कहें तो हम सिर्फ़ और सिर्फ़ भटके हुए लड़के थे

    जिन्हें कुछ लड़कियों ने बेइंतिहाँ प्यार किया

    हम जो ख़ुद को कभी नहीं जान पाए

    सबने हमें अपने हिसाब से परिभाषित किया

    हम हर परिभाषा में जिए

    जब तक उससे बेहतर परिभाषा नहीं मिल गई

    हम ऐसे आज़ादख़याल थे जिन्हें

    आज़ादी की समझ थी

    ख़याल की

    हम ऐसी कमज़र्फ़ पीढ़ी के लड़के थे

    जिनकी मौत हार्ट नहीं हार्ड अटैक से होनी थी

    और हम यह जानते थे

    हम जानते थे कि

    हम कहीं नहीं पहुँचेंगे

    कहीं पहुँचना हमारी औक़ात से बाहर की चीज़ थी

    हम सफल लोगों से जलते थे

    पैसे वालों से जलते थे

    चूँकि हमें कुछ बड़ा करना था इसीलिए

    सबसे ज़्यादा प्रधानमंत्री से जलते थे

    हम वे थे जिन्होंने अपनी प्रेमिका का बदला भाजपा से लिया

    और भाजपा का बदला ख़ुद से

    हम प्रेम, राजनीति, दर्शन सबकी सतही समझ के साथ ख़ुश थे

    ख़ुद से ज़्यादा क़ाबिलों के साथ नहीं बैठते थे

    उल्टा उन्हें 'डैश-डैश' कहते थे

    हम वे थे जिन्हें लगभग हर बड़े ने

    संभावनाशील कहा था

    और हमने सबको निराश किया था

    हमने इतने दिल नहीं तोड़े थे

    जितना निराश किया

    हम निराश करने के विशेषज्ञ थे

    हम इतने अस्थिर थे कि रामायण खत्म होते ही

    'सेक्स इन सिटी' देख सकते थे

    और इतने क़ाहिल थे कि

    जो कर सकते वो कभी नहीं करते थे

    और मेहनती इतने कि हमेशा वही करना चाहते थे

    जो संभव नहीं था

    हमने जाने कितनी बार

    ऑफ़िस का काम छोड़कर

    एलियन लाइफ़ पर विचार किया था

    कैबिनेट में किस मंत्री की जगह

    किसे रखा जाना चाहिए

    इस पर गृहमंत्री से ज़्यादा माथापच्ची हमने की थी

    पैसा हमें काटने को दौड़ता था

    हमें अपने जीवन में आने वाली हर लड़की पर दया आती थी

    हम जो क्रूरता को पीकर विनम्र हुए थे

    हम जो ग़ुस्से, और खिसियाहट को घोंट कर व्यवहार कुशल हुए थे

    हमारे हर नमस्ते में

    एक अश्लील गाली की लाश थी

    हर 'गुड मॉर्निंग' में 'फ़क ऑफ़...' निहित' था

    हम वे थे जिन्होंने

    आईआईटी का फ़ॉर्म भी डाला

    और आईटीआई का भी

    हम चार दिन जिम गए,

    पाँच दिन

    बैंक की कोचिंग

    हम वे थे जो सौ चूहे खाकर एक दिन बुद्ध हो जाना चाहते थे

    और एक दिन अपनी सब ग़लतियाँ किसी कविता में लिखकर

    मोक्ष की मासूम इच्छा पाल लेते थे

    और हम इतने नीच भी थे कि उस कविता के लिए भी प्रशंसा चाहते थे

    जबकि हमारा हृदय जानता था

    कि हमें माफ़ नहीं किया जाना चाहिए

    हम माफ़ी के बिल्कुल लायक़ नहीं थे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रचित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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