स्पॅाट बॅाय

speat beay

हरि मृदुल

हरि मृदुल

स्पॅाट बॅाय

हरि मृदुल

स्पॅाट बॅाय ने फ़िल्म रिलीज़ के पहले दिन के

पहले शो का टिकट लिया

बड़े ग़ौर से निहारा हज़ारों किलोमीटर दूर

देश-विदेश की उन जगहों को

जो बड़ बारीकी से अभी तक उसकी स्मृति में थीं

परदे पर एकदम अलग अंदाज़ में उन्हें देखकर

वह थोड़ा विस्मित हुआ

लेकिन आश्चर्यचकित क़तई नहीं

उसे हीरोइन का दुख देखकर ग्लिसरीन की एक बड़ी-सी

शीशी याद आई

हीरो की बहादुरी देखकर नक़ली बंदूक़

हीरोइन के बाप का ग़ुस्सा देखकर निर्देशक की फूहड़ डाँट

और हीरो के बाप का झुझलाना देखकर प्रोड्यूसर का

बार-बार सिर पीटना

परदे पर बम विस्फ़ोट और ख़ून ही ख़ून देखकर उसने

एक बार माथा ज़रूर पकड़ा

फिर बिना अगल-बग़ल बैठे लोगों की परवाह किए

अपनी सीट के नीचे थूक दिया

हीरो-हीरोइन की अदायगी पर उसका कोई ध्यान नहीं था

बल्कि संवाद, गाने या किसी ख़ास भाव-भंगिमा पर तालियाँ

बजते देख उसे बड़ी कोफ़्त हुई

अलबत्ता कुछ एक्स्ट्रा कलाकारों को

उसने बड़ी बारीकी से देखना चाहा

जो कि हीरोइन के साथ लेकिन पीछे की तरफ़ नाची थीं

और उन्हें जो हीरो के हाथों पिटते-पिटते

सचमुच घायल हो गए थे

फ़िल्म ख़त्म होते-होते उसने परदे पर बड़ी सावधानी से

अपनी नज़र गड़ाई

तीन घंटे की अवधि में पहली बार उसके चेहरे पर

संतोष पाया गया

तेज़ी से सरकती कास्टिंग की पंक्तियों में

वह सुरक्षित था अपने साथियों के साथ

स्पॅाट बॅायज :

भोला, आसिफ़, नरोत्तम, जोसफ़, बब्बन

और नारिया उर्फ़ नारायण

स्रोत :
  • रचनाकार : हरि मृदुल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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