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सत्तर का दशक

sattar ka dashak

व्योमेश शुक्ल

अन्य

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व्योमेश शुक्ल

सत्तर का दशक

व्योमेश शुक्ल

और अधिकव्योमेश शुक्ल

     

    सिगरेट कुर्ता जींस पैदल कविता
    मीसा डीआईआर दिनमान
    आर डी बर्मन 
    ‘उसकी सहजता प्राण है’1
    साफ़ और सादा 
    चमक आज भी बाक़ी 
    दिखता है दूर से 
    उसकी रंगीन फ़िल्मों का ब्लैक एंड व्हाइट 
    ऋषिकेश मुखर्जी में विमल राय संजीव कुमार में गुरुदत्त डेविड में गांधी 
    झलकते हैं
    आँसू से नहाए हुए पवित्र हैं पूरे दस साल 
    कैलेंडर की हर तारीख़ बाक़ी की दोस्त 
    कुछ भी पूरी तरह भूला नहीं गया 
    यादें हैं बीत गए की और हो रहा भी जैसे यादों में हो रहा है 

    अमिताभ की ठाँय-ठाँय सच नहीं मनोरंजन 
    ओछापन हाशिए पर तब 
    और हिंदी की मुख्यधारा थी 
    और नदियों की मुख्यधारा थी और उनको कोई 
    एक दूसरे से जोड़ देने का आदेश नहीं दे रहा था 
    भटक गया मैं राह पैदा हुआ अस्सी में 
    84 के बाद मुझे लगातार कम अच्छा लगता गया 
    अफ़सोस अपमान ने अंधा किया 
    सत्तर की कमियाँ दिखतीं नहीं वहीं रहने का मन 
    एक चिट्ठी एक साइकिल एक भटकन एक भूख हड़ताल में 

    स्रोत :
    • पुस्तक : फिर भी कुछ लोग (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : व्योमेश शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2009

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