चुप की जगह

chup ki jagah

गार्गी मिश्र

गार्गी मिश्र

चुप की जगह

गार्गी मिश्र

स्मृतियों का अप्रासंगिक हो जाना आश्चर्य की सबसे बड़ी घटना यदि होती

तो उस हृदय के लिए क्या कहें

जो हर आश्चर्य को महसूस करने के बाद भी उतना ही कोमल रह जाता है

जितना वह तब था

जब उसने पहली बार जाना था

कि बिछुड़ा दिए जाने से

भुला दिए जाने से

या पहचानने से इनकार कर देने से धमनियों में रक्त नहीं जमता

मृत्यु गले लगा लेती है

हम धीरे-धीरे जानते हैं कि मौत का कुआँ एक खेल है जो कि अभ्यास से सधता है

हम धीरे-धीरे जानते हैं कि मृत्यु ने हमें कितनी ही बार अपनाया है

उसने थामा है हमें वर्षा के किसी दिन

पानी पीते हुए चुपचाप

किसी से बेमतलब ही कुछ पूछते हुए

रोज़ ख़ुश होते हुए कि शाम को साढ़े पाँच पर चाय बनाएँगे और ख़ुशी ढूँढ़ेंगे

किसी को पूछते हुए

तुमने चाय पी?

और ‘हाँ’ सुन कर यह सोचते हुए कि हाँ में कितना कुछ मिल जाता है

हम धीरे-धीरे जानते हैं कि इस संसार में सब कुछ प्रासंगिक है

हम धीरे-धीरे जानते हैं कि मृत फूल और दीवार की घड़ी हमारे सभी रहस्य जानती हैं

हम धीरे-धीरे जान जाते हैं

कि रात हमसे कहीं ज़्यादा उदास

और दिन हमसे कहीं ज़्यादा थका हुआ है

हम धीरे-धीरे जान ही जाते हैं

कि इस दुनिया में कहीं भी

कोई भी आश्चर्य नहीं है

बस कुछ जगहें हैं

उन जगहों पर कुछ चिह्न हैं

वे जगहें हमेशा चुप रहेंगी

और हमें बीत जाना होगा!

स्रोत :
  • रचनाकार : गार्गी मिश्र
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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