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चुका हुआ नाम

chuka hua naam

गाब्रियल ओकारा

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गाब्रियल ओकारा

चुका हुआ नाम

गाब्रियल ओकारा

और अधिकगाब्रियल ओकारा

     

    मैं बस इक नाम हूँ
    नाम हवा पर लिखा
    तुम्हारे सुकूँ में ख़लल डालता
    नापसंदीदा इक शोर-सा
    गोश्त और ख़ूँ से ना-आश्ना
    ख़ून मेरा तुम्हारी रगों में रवाँ
    गोश्त भी हड्डियों पर मढ़ा

    मैं बस इक दास्ताँ
    सुबह के सारे अख़बारों की
    तुमने जिनको अलग रख दिया
    या उन्हें फेंका रद्दी में और लग गए
    अपने नन्हों की ख़ुराक अंडे, भुने गोश्त और दूध में
    और मैं जिसका ख़ून और गोश्त तुम ले चुके
    नंगे पाँवों भटकता हूँ
    काँटों भरी झाड़ियाँ छानता
    वर्म-आलूदा पाँव लिए ढूँढ़ता
    अपने नन्हों की ख़ुराक
    घोंघे रतालू मकोड़े
    मैं बस इक नाम हूँ
    इक चुका नाम
    दूर इंसान की नस्ल से
    और जब कभी ढेर होते हुए बच्चे
    दम तोड़ते हैं सड़क के किनारे
    माओं के बे-नमक अश्क बनते हैं झरने
    चेहरे पे मेरे
    और फिर मैं सड़े गोश्त और ख़ूँ की बदबू में
    घिर जाता हूँ

    मैं फ़क़त इक चुका नाम
    क़ुर्बानगाहों के दालानों में
    आगे पीछे उछाला हुआ
    मज़हबी रस्म के दिल्लगी-शग़ल में
    और यह सब तुम्हारी समाअत की ख़ातिर नहीं
    वरना जादू उतर जाएगा
    जादू जिसने बनाया है मुझको बस इक नाम
    डगमगाते हैं हम
    मेरा मासूम-ओ-मैं, खाल और हड्डियों बीच कुछ भी नहीं
    घोर अँधेरा हमें घेर लेता हर ओर से

    मेरा दिल फिर भी गाता है नग़्माते-दिन
    दिन लबालब मेरे गीत से और बच्चे की मुस्कान से
    हाँ मैं गाता हूँ चीख़ों कराहों के अँधकार में
    मरते हुए
    मरते, कि जादू ने मुझको बनाया है बस नाम
    इक चुका नाम
    फिर भी दिल मेरा गाता है
    मैं इबादत के घंटों को सुनकर
    नक़ाहत से जैसे ही उठता हूँ तो
    घंटियाँ तीरगी चीरकर
    मुझ तक आती हैं
    जैसे कोई हाथ हूँ।

             
    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 206)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : गाब्रियल ओकारा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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