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बचपन

bachpan

निकोलाय ज़बोलोत्स्की

अन्य

अन्य

सुंदर गुड़िया की-सी आँखें उसकी बड़ी-बड़ी

उसकी बरौनियों के वाणों के नीचे...

चमकीले विश्वास भरे अविकारी निर्मल

बाल सुलभ दो तारे

वह देख रही क्या

ऐसा क्या विरलापन

इस ग्रामीण निकेतन

उपवन

घर के बाग़ीचे में

जिसका मालिक झुका झाड़ियों पर

कुछ को है छाँट रहा

कुछ को है बाँध रहा गाते-गाते

दो दुबले-पतले मुर्ग़े हैं

बाड़े के ऊपर लड़ते हैं

ड्यौढ़ी के खंभे के ऊपर हैं फैल रहीं

झबरी-सी अँगूर लताएँ

वह ताक रही छोटी बच्ची

उसकी इन निर्मल आँखों में है झाँक रही

सारी दुनिया की छवि सच्ची

यह दुनिया अद्भुत दुनिया उसको लगती है

विरलेपन से भी विरली

इसने पहली बार असल में उसको मोहा

यह घर यह उपवन यह बाड़ा

उसके मन की गहराई में आज समाया

जैसे जीवन-पथ के मित्रों की हो जाया

दिन गुज़रेंगे

उथल-पुथल होगी प्राणों में

सुख-दुख आएँगे

पत्नी होगी माँ भी होगी

पक कर बाल श्वेत भी होंगे

लेकिन तब तक याद रखेगी

पलभर के सुख के महत्त्व को।

स्रोत :
  • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 148)
  • रचनाकार : निकोलाय ज़बोलोत्स्की
  • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
  • संस्करण : 1975

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