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चिड़ी का ग़ुलाम

chiDi ka ghulam

मलयज

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मलयज

चिड़ी का ग़ुलाम

मलयज

और अधिकमलयज

    चिड़ी का ग़ुलाम

    किसी तरह हीनताग्रंथि को वश में कर

    छींटदार कुसुंभी सड़क पर

    चला

    पर बचाते बचाते भी अख़िरकार

    ईंट की बेगम से टकराया

    अच्छे ख़ासे मौसम में

    दिल चूर चूर हुआ

    तब पंखों को ख़ुद चोंच से नोच नोच

    इधर उधर बिखेरा उसने

    और फिर एक गड्डी में

    सज़ा सँवारकर बाँधा उसने

    ताकि उन्हें वहाँ साथ ले जा सके

    जहाँ पके बालोंवाली रौशनी थी

    अभी भूडोल आएगा

    चौकुनिया कोठरी में

    ऐसी कुछ होनी थी :

    दीवाल पर टँगे

    दोमुँहे छत्रपति राजागण

    भौंहें चढ़ाए ऊबे-से

    क्यू में खड़े थे

    'इस बार निश्चय ही क्रांति होगी

    स्तर बदलेंगे'

    वे बेसाख़्ता चिल्लाए

    फिर मुस्कराए

    मुँह बाए बाए

    उधर पके बालोंवाली रौशनी में

    उँगुली डुबो-डुबो

    पंखों की गड्डी को चार से भाग देकर

    बावन पत्तों के दिल टूट जाने की तेरह दास्तान

    दत्तचित्त होकर लिखने लगा

    यही आपका ग़ुलाम...

    स्रोत :
    • पुस्तक : अपने होने को अप्रकाशित करता हुआ (पृष्ठ 27)
    • रचनाकार : मलयज
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 1980

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