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छाया का समुद्र

chhaya ka samudr

महेश आलोक

अन्य

अन्य

महेश आलोक

छाया का समुद्र

महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

    छाया का समुद्र फैलता जा रहा है पृथ्वी पर

    और मैं कूदता हूँ छाया में

    पृथ्वी की अंतिम हिचकी से पूर्व तमाम साँसों को

    स्वाभाविक लय में लाने के लिए

    कैसे बचाए जा सकते हैं

    दादा-दादी पत्नी-बच्चे और कबीर

    केदारनाथ सिंह इत्यादि

    छाया में जितनी जगह है उतनी जगह में

    पृथ्वी की आग मुर्दा है

    छाया का समुद्र अथवा समुद्र की छाया

    कहना मुश्किल है कौन कितना अलग है

    एक दूसरे की छाया से

    मैं छाया में छाया को पकड़ता हूँ

    हाथ से छूटती छाया में पृथ्वी का कुल समय डूबता है

    डूबता हूँ मैं भी समुद्र के नमक को

    छाया से अलग करने के लिए

    छाया में खड़ा होकर देखने से नमक की रौशनी

    सूरज की तरह चमकती है

    अगर बचा है नमक

    बची रहेगी पृथ्वी

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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