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चेहरे

chehre

सौरभ राय

अन्य

अन्य

सौरभ राय

चेहरे

सौरभ राय

और अधिकसौरभ राय

    कुछ चेहरे बचे हैं

    इनकी हड्डियों में मज्जा

    शिराओं में रक्त नहीं है

    ये चेहरे खेतों में दबे हैं

    मशीनों के गियर के बीच

    घड़घड़ाकर पिस रहे हैं

    दुकानों में आइए-आइए चिल्लाते हुए

    इंतिज़ार कर रहे हैं

    ग्राहक का

    यही चेहरे हैं

    जो दंगों में बिलबिलाते हैं

    हिंदू को हिंदू

    मुस्लिम को मुस्लिम हूँ

    बताते हैं

    यही चेहरे हैं

    जिन पर यूनियन कार्बाइड

    फूटकर बरस जाता है—

    इत्रपाश की तरह

    झरिया कोलियरी में जो आज भी

    कोयला बन जलते हैं

    ये चेहरे एक से हैं

    दस हज़ार वर्षों से

    बदसूरत चेहरों की मिलावट कर

    ज़बरदस्ती अलग-अलग किए गए हैं

    ये चेहरे एक से हैं

    पर एक नहीं हैं

    इनके एक होने का ख़तरा है

    इन्हीं चेहरों की भीड़ में

    शासक डकारते हैं—

    जो चेहरे बच गए हैं

    देश के शत्रु हैं

    उनको मारो

    जो चेहरे कम हो रहे हैं

    वे दिवंगत हैं

    देश को उन पर नाज़ है…”

    शासक को नहीं पता

    जब चेहरों में मज्जा और

    रक्त नहीं होता

    तो ज़्यादा दबाने पर

    कुछ चेहरे

    बम की तरह फटते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौरभ राय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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