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चरित्रहीनता : तीन

charitrhinta ha teen

संदीप रावत

अन्य

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संदीप रावत

चरित्रहीनता : तीन

संदीप रावत

तुमसे दूर

मेरा दिल

पानी की तरह

गहरा स्याह और भारी हो गया है

गहरा स्याह भारी पानी

किसी सपने-सा लगता है

तुम्हारे साथ

पानियों की मेरी स्मृति

मुझमें पूरी लौट आई है

पानी हृदय की आँख है

कभी कभी नींद जैसी टूटी हुई चीज़ों

के आस पास मैं

पानी की आवाज़ सुनता हूँ

हर जागृति काव्य का क्षण है

हवा पानी की छुअन

मन को

छोटे-छोटे पिंजरों से रिहा करती है

हर रिहाई एक प्रेम कविता होती है

रात हमने जो सूखे पत्ते

जलते अलाव में डाले थे

उन्हें मैंने

पानियों के ख़्वाब में

जड़ों-सा डूबा

मछलियों-सा तैरते देखा

उसी ख़्वाब के बहाव की

शीतलता से जागकर

मैंने तुम्हें चूमकर गले लगाया

किसी को चूमना

बर्फ़ और आग का ख़्वाब देखना है

हमारे सीनों के बीच

निःशब्दता की

सुनहरी लपटें आसमान छू रही हैं

सर्द रात आग तापते हुए

हम देखते हैं कि आग

आईना है

हमने क़रीब से देखा हम आग थे

और क़रीब आए तो पानी हो गए

पृथ्वी के साथ-साथ काँपते

आए और भी क़रीब तो देखा हम हो चुके थे सब कुछ

और कुछ नहीं

प्रेम के स्वप्नों में कोई मूरत नहीं थी

केवल मिट्टी थी

और हाथ थे अनछुए

जो हवा

आकाश

पानी और आग से बने थे

और निरंतर

स्वप्न को गहरा कर रहे थे

इसलिए स्वप्न के सिवाय यहाँ कुछ नहीं देखा जा सकता।

स्रोत :
  • रचनाकार : संदीप रावत
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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