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चाँद मुस्कुराया

chand muskuraya

ईश्वर चित्रकार

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चाँद मुस्कुराया

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    बादल ज़रा-सा सरका वो चाँद मुस्कुराया

    हल्की-सी इक हवा और नाजुक से हैं नज़ारे

    साकार हो रहे ज्यों सपने किसी के सारे।

    सीलन-सी हरारत है हर चीज़ में समाई

    नए जीवन की ख़ातिर धरती ही दी दिखाई।

    कुछ सुरमई उजाला कुछ चमकता अँधेरा

    ज्यों रात के आँचल में है खेलता सवेरा।

    यों साफ़ मखमली पल साया सा हर तरफ़ है

    झुरमुट ख़ामोशियों का साया भी हर तरफ़ है।

    रंगीन रोशनी की किरणों ने बारिशें की

    बादल परे हटाकर वह चाँद मुस्कुराया।

    भरपूर अकेलापन ख़ाली-सी है जवानी

    लेकर कहाँ चली है एहसास की रवानी?

    बनकर नज़र मुजस्सम क्या खोजते हैं तारे

    अपनी तरह के ही हैं यह इंतज़ार मारे?

    थमते तनिक नहीं ये दिन-रात चलते रहते

    क्या इस तरह रहेंगे प्रेमी यहाँ पिघलते?

    सौंदर्य वह है कहाँ चुंबक-सा खींचता है

    खंड-खंड दिल को गतिमय बना रहा है?

    हर बूँद से लहू की दिल दर्द गुनगुनाया

    बादल ज़रा हटा के क्या चाँद मुस्कुराया?

    सौंदर्य स्वयं है कहता यह क्या यहाँ बिखेरा

    तेरे बिना है क्यों यहाँ होश का शरारा?

    क्यों ज़िंदगी को पल-भर साँसें नहीं पिलाता

    लेकर नज़र में तुझको तेरी राह मिलती।

    मातम की चादरों पे आशाएँ हैं अधूरी

    दिल दे के मानो पीड़ा दुनिया अपनी होती।

    किंचित कहीं भी मुझको मिलता पता तुम्हारा

    होता है और व्याकुल आकुल-सा मन हमारा।

    बिच्छू के डंक तीखे एहसान नाचते हैं।

    बादल तनिक हटाकर चंदा को बाँचते हैं।

    बिन तुम कोई सुंदर निर्जीव हर नज़ारा

    यह ज़िंदगी है दलदल, लहर किनारा।

    जल, थल, पहाड़, जंगल, कुँए में सब सलीबें

    सब कुछ है प्यार सहता चखकर यहाँ तरकीबें।

    हर चीज़ चल रही है खींची हुई तुम्हारी

    तेरे विकास हित ही बदली फ़िज़ा हमारी।

    क्रांति है हर सुहाती, तुमको सदा सुहानी

    हर साज गीत गाता, जीवन की मेहरबानी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 162)
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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