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चलते-चलते

chalte chalte

भारतभूषण अग्रवाल

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और अधिकभारतभूषण अग्रवाल

    मैं चाह रहा हूँ, गाऊँ केवल एक गान, आख़िरी समय

    पर जी में गीतों की भीड़ लगी

    मैं चाह रहा हूँ, बस, बुझ जाएँ यहीं प्राण, रुक जाए हृदय

    पर साँसों में तेरी प्रीति जगी

    इस लिए मौन हो जाता हूँ, स्वीकार करो यह बिदा

    आज आख़िरी बार;

    मत समझो मेरी नीरवता को व्यथा-जात

    या मेरा निज पर अनाचार।

    मैं आज बिछुड़ कर भी सचमुच ही सुखी हुआ मेरी रानी!

    इतना विश्वास करो मुझ पर

    मैं सुखी हूँ कि तुमने अपनी नारी-जन सुलभ चातुरी से

    बिखरा दी मेरी नादानी

    पानी-पानी करके सत्वर

    सुखी हूँ कि इस बिदा-समय भी नहीं नयन गीले तेरे,

    सुखी हूँ कि तुमने बँटाए कभी अलभ्य स्वप्न मेरे,

    सुखी हूँ कि कर सकीं मुझे तुम निर्वासित यों अनायास,

    सुखी हूँ कि मेरा प्रमाद बन सका नहीं तेरा विलास!

    में सुखी हूँ कि—पर रहने दो, तुम बस इतना ही जानो

    मैं हूँ आज सुखी,

    अंतिम बिछोह, दो बिदा आज आख़िरी बार इंदुमुखी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : तार सप्तक (पृष्ठ 95)
    • संपादक : अज्ञेय
    • रचनाकार : भारतभूषण अग्रवाल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2011

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