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चालीस को पार करती मैं

chalis ko paar karti main

एंजेला एनिमा तिर्की

अन्य

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एंजेला एनिमा तिर्की

चालीस को पार करती मैं

एंजेला एनिमा तिर्की

चालीस को पार करती मैं

ख़ूबसूरत ढलती शाम हो

या फिर गहरी काली रात

एक दिन कम हो रहे हर रोज़ को

बड़े प्यार से लिखना चाहती हूँ

नादानियाँ नहीं अब 

संजीदगी तजुर्बों के साथ

थकना नहीं चाहती

चालीस को पार करती मैं

शर्तों पे जीना नहीं चाहती

ज़्यादा समझदार तो नहीं 

लेकिन बढ़ती उम्र के लिहाज़ से

छुपकर नहीं बल्कि खुलके

चालीस को पार करती मैं

बचपन के आँसू रोना चाहती

लोग देखते हैं मुझे तल्ख़ निगाहों से

क्योंकि अब भी करती हूँ प्रेम की बातें

इस मोड़ पर प्रेम का क़त्ल करूँ?

चालीस को पार करती मैं

प्रेम का गुनहगार नहीं बनना चाहती

सफ़ेद हो रहे बाल

चेहरे पे उभरती झुर्रियों के साथ

आईने में ख़ुद को निहारते 

चालीस को पार करती मैं

मुस्कुराहट के साथ

और भी ख़ूबसूरत लगना चाहती हूँ

माना नज़रें कमज़ोर होने लगीं हैं मेरी

लेकिन लोगों को पढ़ने लगी हूँ

नाराज़गी नहीं रही पसंद

चालीस को पार करती मैं

इस पड़ाव को शौक से जीने लगी हूँ

बंदिशें जकड़ नहीं सकेंगी मुझे

कमज़ोर नहीं मन मेरा 

चालीस पार करती मैं

ज़रूरी नहीं अब समझने लगी हूँ

तो क्या हुआ जो चालीस की हुई

बढ़ती उम्र को बोझ नहीं

अठारह से छब्बीस की अठखेली के बाद

अब चालीस की बेहिसाब

ख़ुशनसीब कहलाना चाहती 

नायाब कोशिश में लगी हुई हूँ

बुढ़ापे का क़िस्सा मेरा कुछ ऐसा हो

जो कभी बुज़ुर्ग नहीं होता 

बस उस इश्क़ के जैसा हो

मेरी उम्र मुझे थका पाए 

ये चालीस पार मेरा कुछ ऐसा हो

जैसे इस तरह की एक नई किताब लिखने लगी हूँ।

स्रोत :
  • रचनाकार : एंजेला एनिमा तिर्की
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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