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चाकरी के रास्ते पर

chakari ke raste par

अनुवाद : त्रिनेत्र जोशी

थाओ छ्येन

अन्य

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थाओ छ्येन

चाकरी के रास्ते पर

थाओ छ्येन

और अधिकथाओ छ्येन

    जवानी में रहा दुनियादारी से दूर

    संगीत और किताबों में मग्न

    साधारण होते थे मेरे कपड़े, पर मैं रहता था तृप्त

    जेब अक्सर होती थी ख़ाली, मैं रहता था मस्त

    तब आया वह दिन, गाड़ियाँ चरमराई गली में—

    आदेश थामे उन्होंने—बदलो कपड़े और चलो

    अब मुझे जाना है मुझे अपने खेतों और बगियों से दूर

    अकेली नाव चलती जाती दूर और दूर

    उड़-उड़कर लौटती हैं घर की ओर मेरी भावनाएँ

    लंबी और लंबी होती जा रही है यात्रा

    ऊपर-नीचे जाना है सैकड़ों कोस अभी

    अनपहचाने रास्तों और नदियों को देखते-देखते थक चुकी हैं मेरी

    आँखें

    आसमान में बादल, ऊँची उड़ान पर पक्षी

    नीचे गहराई में तैरती मछलियाँ

    शर्मिंदा हूँ! कभी प्रकृति ही बसी रहती थी हृदय में...

    पर कौन कह सकता है मैं बँधा ही रहूँगा देह से?

    हालाँकि नियति मुझसे यह सब करवा रही है।

    आख़िर विद्वान पान कू की तरह मैं भी लौटूँगा एक दिन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 154)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : थाओ छ्येन
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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