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व्यर्थ

byarth

अनीता वर्मा

अन्य

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अनीता वर्मा

व्यर्थ

अनीता वर्मा

और अधिकअनीता वर्मा

    प्रेम के भीतर एक व्यर्थ होती हुई स्त्री

    स्वप्न और यथार्थ को लपेटे चलती जाती है

    चाँद की बर्फ़ीली बारिश का बोझ उठाए हुए

    चलती जाती है सन्नाटे की नोक पर

    अब वह इस तरह है

    कि बहुत-सी बीहड़ ऋतुएँ हैं और देती हुई आँखें हैं

    मन ही मन अनंत बातों का एक जाल बुनती रहती है वह

    पाँवों में चुभती हैं चप्पलें सड़क पर चलते छतरी उलझ जाती है

    वह रहती है लगातार व्यस्त और मौन

    सोचती हुई यातनामय विषादमय

    उसकी चोटी पीठ के नीचे गड़ती है सफ़ेद मृत्यु की चादर पर

    दूर किसी छोर से आती हवा उसे ढँक लेती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक जन्म में सब (पृष्ठ 17)
    • रचनाकार : अनीता वर्मा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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