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बुढ़ापा

buDhapa

अजीत रायज़ादा

अन्य

अन्य

अजीत रायज़ादा

बुढ़ापा

अजीत रायज़ादा

और अधिकअजीत रायज़ादा

    वह

    टूटी कमानी के

    मोटे काँच वाले चश्मे से

    मोतियाबिंद भरी आँखों पर

    ज़ोर डालता हुआ

    देख रहा था लगातार

    मेरी ही ओर

    उसको अनदेखा करते हुए

    मैंने सँभाली अपनी साइकिल

    बबलगम का

    ग़ुब्बारा फलाता हुआ

    बच्चों की सीट पर बैठा छोटू

    बार-बार घंटी बजा कर

    हो रहा था उतावला

    बाज़ार से ख़रीदी फिरकनी

    घुमाते हुए

    घर पहुँचने की जल्दी में

    ज़ोर से गला खखार कर

    फ़ुटपाथ पर उसने

    बलग़म को थूका

    और काँपते हाथों से

    अपनी छड़ी टिकाते हुए

    लगभग घिसटता-सा

    मेरे पास आकर बोला—

    लगता है

    पहले भी कहीं देखा है तुम्हें

    आवाज़ भी पहचानी सी

    लगती है तुम्हारी

    पर कर नहीं पा रहा याद

    तुम्हारा नाम

    मैंने

    घूर कर देखा उसकी ओर

    और बिना उत्तर दिए

    पैडल पर ज़ोर देकर

    साइकिल आगे बढ़ा दी

    पहचान तो गया था मैं

    उसको देखते ही

    पर उससे बातचीत

    नहीं करना चाहता था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हाशिए पर आदमी (पृष्ठ 25)
    • रचनाकार : परिमल प्रकाशन
    • प्रकाशन : परिमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1991

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