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बुद्ध भगवान

buddh bhagwan

मैथिलीशरण गुप्त

अन्य

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मैथिलीशरण गुप्त

बुद्ध भगवान

मैथिलीशरण गुप्त

और अधिकमैथिलीशरण गुप्त

    सुखमय शांति-निधान कहो ये कौन हैं?

    तेज:-पुंज-विधान कहो ये कौन हैं?

    तपोनिरत विख्यात यही विभु ‘बुद्ध’ हैं;

    स्वयं ईश हैं, अत: निरीश्वर शुद्ध हैं॥

    विजयी हैं ये महा मोह संग्राम के;

    अधिकारी हैं परम पूर्ण विश्राम के।

    शम-दम के आधार, दया के धाम हैं;

    सदानंद, स्वच्छंद और निष्काम हैं॥

    भारत-भाग्याकाश भव्य ये भानु हैं,

    विषय-विपिन के लिए कराल कृशानु हैं।

    भारत में ही नहीं, विश्व भर में कभी—

    फैलाया आलोक, मिटाया तम सभी॥

    मूर्ति समझिए इन्हें अलौकिक त्याग की,

    चली इनके निकट एक भी राग की।

    शिशु सुत, युवती प्रिया, राज्य-वैभव तथा

    परहितार्थ तज दिए इन्होंने सर्वथा!

    तन पर केवल एक गेरुवा वस्त्र था,

    एकाकी थे, पास कोई शस्त्र था,

    जीत लिया संसार किंतु निज शक्ति से,

    सब के सिर झुक पड़े स्वयं ही भक्ति से!

    आश्रय हैं ये अतुल अतर्कित युक्ति के,

    पथ दर्शक हैं स्वतंत्रता या मुक्ति के,

    किसी स्वार्थ के लिए इनका कर्म है,

    प्राणिमात्र में आत्मभाव ही धर्म है॥

    गीताअमृत के मेघ दया करते जो,

    समयोचित वर बुद्ध रूप धरते जो

    तो वेदों का ध्यान हमें रहता कहाँ?

    बनते नर पशु-हिंस्र मखों के मिष यहाँ॥

    कोरा ईश्वर-वाद करेगा क्या कहो?

    हैं जो प्रभु के कर्म उन्हें करते रहो।

    बौद्ध और ब्राह्मण्य धर्म यों एक है,

    दोनों में ही यही अभिन्न विवेक है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : मंगल-घट (पृष्ठ 143)
    • संपादक : मैथिलीशरण गुप्त
    • रचनाकार : मैथिलीशरण गुप्त
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन, चिरगाँव (झाँसी)
    • संस्करण : 1994

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