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तलवार

talwar

गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

अन्य

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और अधिकगयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

    यह तेरी तलवार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

    इसमें धरा प्रलय का पानी,

    इसकी धाक शत्रु ने मानी।

    फिर तेरी हिम्मत लासानी,

    आया जो सम्मुख अभिमानी॥

    उतरा इसके घाट पलक में,

    उसे कर दिया पार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

    यह तेरी तलवार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

    देख-देखकर इसके जौहर,

    —आता जौहरियों को चक्कर।

    पूरब-पश्चिम-दक्षिण-उत्तर,

    करती है चौरंग बराबर॥

    जिसको आँच लग गयी इसकी,

    वही हो गया क्षार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

    यह तेरी तलवार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

    ऐसी चोटें कड़ी लगाती,

    गले मृत्यु की घड़ी लगाती।

    कभी ख़ाली पड़ी, लगाती,

    ओलों की-सी झड़ी, लगाती॥

    काट-काटकर, छाँट-छाँटकर,

    शीशों के अंबार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

    यह तेरी तलवार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

    मुख स्वदेश का उज्ज्वल करती,

    सदा गर्व बैरी का हरती।

    बिजली सदृश डूबती-तिरती,

    पल भर में है पार उतरती॥

    इसकी चाल देखकर होता,

    कंपमान संसार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

    यह तेरी तलवार,

    बहादुर!

    यह तेरी तलवार।

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