Font by Mehr Nastaliq Web

ब्रह्म सत्यम

brahm sattyam

अनुराधा सिंह

अन्य

अन्य

अनुराधा सिंह

ब्रह्म सत्यम

अनुराधा सिंह

और अधिकअनुराधा सिंह

    मैं सोना चाहती थी

    सोने नहीं दिया गया

    दरवाज़ा खड़कता रहा

    फ़ोन की घंटी बजती रही

    लोग अचानक याद गए संदेशे भेजते रहे

    धूल भी एक सायरन की तरह चीख़ती हुई दर्ज हो रही थी घर में

    जबकि मेरे जागे रहने की दरकार नहीं थी

    दुनिया में समूची घृणा प्रबंध और लूट

    बिना किसी हस्तक्षेप कार्यांवित हो रहे थे

    जहाँ मैं दिख रही थी

    वहाँ भी एक पेपर क्लिप की तरह नगण्य थी

    फिर भी लोग चाहते थे मेरा जगा रहना

    भारी पलकों से

    सबको खाना खाते चाय सुड़कते देखती रही

    मेरी भूख पर नींद हावी थी

    वाॅशिंग मशीन में बदरंग कपड़े भरती निकालती रही

    जबकि दुनिया मुद्रा-स्फीति की दामी केंचुल बदल रही थी

    यों तमाम बरस जबरन आँखें खुली रखने के बाद भी

    आरोप है कि चेतना सोई रही मेरी

    जैसे अंतरात्मा और ज़मीर सोए रहते हैं

    खुली आँखें देखकर भी ईश्वर ने पूछा अक्सर

    सो गईं क्या?

    ईश्वर, जो सचमुच जाग गई तो ज़मीर बेच दूँगी औने-पौने

    फ़ोन उठाने संदेशे पढ़ने शुरू कर दूँगी

    दरवाज़ा खोल कर देखूँगी कि

    घंटी बजाने वाला आख़िर चाहता क्या है

    सोने दो मुझे

    क्योंकि बाज़ार भी चाहता है

    सोया रहे विवेक

    खुली रहें आँखें।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराधा सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए