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किताबें

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सपना भट्ट

अन्य

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सपना भट्ट

किताबें

सपना भट्ट

मैंने ईमान की तरह बरती किताबें

किताबें ही मेरी संगी रही,

मैंने किताबों से प्यार किया।

जीवन के घनघोर नैराश्य में

मैंने ईश्वर को नहीं पुकारा

मंदिरों में घंटियाँ नहीं बजाईं

प्रार्थना में विनत रहकर दीपक नहीं जलाए

मैंने दयालु किताबों की सतरें पलटीं।

मैंने उन लोगों से कभी हाथ नहीं मिलाया

जिनके हाथों में नहीं थी

किताबों को छूने की सलाहियत

जिनके घरों में किताबें थीं

वे घर अजाने-अदेखे ही रहे सदा।

मैंने बाबा से ब्याह में माँगा

उनका वह बड़ा फ़ौजी संदूक़

जिस पर लिखा था

ओमप्रकाश, 1623 पायनियर कंपनी

नहीं, स्त्रीधन रखने को नहीं,

किताबें ही मेरा स्त्रीधन हैं

उन्हें रखने को आज भी मेरे पास आलमारी नहीं।

आलमारी ख़रीदने निकलते ही हमेशा मुझे दिखा,

बहुप्रतीक्षित किसी अनुपलब्ध किताब का नया संस्करण।

मैंने किताबों से प्रणय किया,

किताबों से लिपटकर रोई

किताबें ही मेरी राज़दार रहीं

मेरे भीतर अस्थि-रक्त-मांस-मज्जा नहीं

किताबों की सीली-सी गंध है,

किताबों की ही क्षुधा और प्यास भी।

मैंने माँ से नहीं किताबों से सीखी दुनियादारी

किताबों ने मुझे बेहतर मनुष्य होने में सहायता की

मैंने अकेले चलते हुए काटे

सबसे कठिन दिन

सबसे ख़राब मौसम गुज़ारे इनके ही सहारे

किताबें ही मेरे जीवन का सरमाया हैं।

मेरे बाद मेरा सब कुछ बँट जाएगा मेरे बच्चों में

किताबें मगर चौदह बरस की उस पहाड़ी बच्ची को मिलेंगी

जो चार कोस आँधी-पानी में चलकर

पुरानी किताब लौटाकर

मुझसे नई माँग ले जाती है।

स्रोत :
  • रचनाकार : सपना भट्ट
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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