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हम और दृश्य

hum aur drishya

रूपम मिश्र

अन्य

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रूपम मिश्र

हम और दृश्य

रूपम मिश्र

और अधिकरूपम मिश्र

    हम एक ही पटकथा के पात्र थे

    एक ही कहानी कहते हुए हम दोनों अलग-अलग दृश्य में होते

    जैसे एक दृश्य तुम देखते हुए कहते तुमसे कभी मिलने आऊँगा तुम्हारे गाँव तो

    नदी के किनारे बैठेंगे

    जी भर बातें करगें

    तुम बेहया के हल्के बैंगनी फूलों की अल्पना बनाना

    उसी दृश्य में तुमसे आगे जाकर देखती हूँ

    नदी का वही किनारा है

    बहेरी आम का वही पुराना पेड़ है

    जिसके तने को पकड़कर हम छुटपन में गोल-गोल घूमते थे

    उसी की एक लंबी डाल पर दो लाशें झूल रही हैं

    एक मेरी है दूसरी का बस माथा देखकर ही मैं चीख़ पड़ती हूँ

    और दृश्य से भाग आती हूँ

    तुम रूमानियत में दूसरा दृश्य देखते हो

    किसी शाम जब आकाश के थाल में तारें बिखरे होंगे

    संसार मीठी नींद में होगा

    तो चुपके से तुमसे मिलने जाऊँगा

    मैं झट से बचपन में चली जाती हूँ

    जहाँ दादी भाई को गोद में लिए रानी सारंगा और सदावृक्ष की कहानी सुना रही हैं

    मैं सीधे कहानी के क्लाइमेक्स में पहुँचती हूँ

    जहाँ रानी सारंगा से मिलने आए प्रेमी का गला खचाक से काट दिया जाता है

    और छोटा भाई ताली पीटकर हँसने लगता है

    दृश्य और भी था जिसमें मेरा चेहरा नहीं था

    देहों से भरा एक मकान था

    और मैं एक अछूत बर्तन की तरह घर के एक कोने में पड़ी थी

    तुम और भी दृश्य बताते हो

    जिसमें समंदर बादल और पहाड़ होते हैं

    मैं कहती हूँ : कहते रहो ये सुनना अच्छा लग रहा है!

    बस मेरे गाँव-जवार की तरफ़ लौटना क्योंकि

    ये आत्मा प्रेम की ज़र-ख़रीद है और देह कुछ देहों की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रूपम मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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