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मेरे ख़ून का एक संक्षिप्त इतिहास

mere khoon ka ek sankshipt itihas

पराग पावन

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पराग पावन

मेरे ख़ून का एक संक्षिप्त इतिहास

पराग पावन

और अधिकपराग पावन

    मेरे पुरखे

    वहाँ, जंगल के उस पार

    टीलों और पहाड़ों पर

    अपने ढोर लेकर गए थे

    और नहीं लौटे हैं

    शाम गाढ़ी होती जा रही

    यह बेला अँधेरे में डूबने वाली है

    घिर आए हैं बादल

    खोने लगी हैं दिशाएँ

    और मेरे पुरखे नहीं लौटे हैं

    आकुलता के शबाब में लिपटा

    अजीब मनहूस मौसम है

    रौशनी की हार पर रोने वाले हैं बादल

    जंगल के रास्ते अभी डूबकर मर जाएँगे पानी में

    रास्तों की मौत से पहले

    कबूतर लौट आए हैं घोंसलों में

    मुर्ग़ियाँ लौट आई हैं दड़बों तक

    हिरन, घोड़े, गाय, बाघ, भेड़िए

    सब लौट आए हैं जंगल के इस पार

    पर मेरे पुरखे टीलों पर बैठकर

    बाँस की टोकरी बना रहे

    बनाते ही जा रहे

    शाम ख़त्म हो चुकी है

    और वे

    नहीं लौटे हैं

    इसी देश में

    मैंने मेमनों को हत्यारा साबित होते देखा

    और हत्यारों को प्रधानमंत्री घोषित होते देखा

    इसी देश में

    ईमान की देवी को

    जल्लाद की बैठक में नाचते देखा

    और जल्लाद को

    अहिंसा पर शोध-पत्र पेश करते देखा

    मेरे भीतर की आग

    किसी और दिन के लिए

    क्रोध में आकाश हुई मेरी चीख़

    किसी और दिन के लिए

    म्यान से निकल आई मेरे तलवार की यह थरथराहट

    किसी और दिन के लिए

    आज

    यह अँधेरी शाम की बेला

    घिरे हुए बादल

    सन्नाटा ओढ़े जंगल

    और मेरे पुरखे

    अभी तक नहीं लौटे हैं।

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    पराग पावन

    पराग पावन

    स्रोत :
    • रचनाकार : पराग पावन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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