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अठारह दिन

atharah din

बद्री नारायण

अन्य

अन्य

बद्री नारायण

अठारह दिन

बद्री नारायण

और अधिकबद्री नारायण

    अक्षौहिणी सेनाएँ

    सहस्र कोटि हाथी

    मुझे लड़नी पड़ती है

    अपने से ही लड़ाई।

    कभी भी

    कभी तक

    कोई समय निश्चित नहीं

    जीत-हार कुछ तय नहीं

    पहले से कोई तैयारी नहीं।

    मैं कटता हूँ, मैं जुड़ता हूँ

    मैं मरता हूँ, मैं जीवित होता हूँ।

    खन-खन तेग़ चलता है

    छप छप छप तलवार

    बज्र, बुर्ज़, बरछा, तगाड़ी

    छर- छर भर जाता है ख़ून

    कविताओं पर।

    याद है आपको

    पिछली बार तो

    अठारह दिन तक

    लगातार चला था युद्ध।

    स्रोत :
    • पुस्तक : खुदाई में हिंसा (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : बद्री नारायण
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2010

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