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बीतना

Bitna

शालिनी सिंह

अन्य

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और अधिकशालिनी सिंह

    जीवन के समूचे परिदृश्य में

    जाने कौन बहरूपिया आता है

    चहलक़दमी करता है

    कंधों पर चुपके से थोड़े से दुख और डाल जाता है

    कुछ सुख आप चले जाते हैं उसके साथ

    तैरना नहीं आता

    सुख की कामना करते हुए

    दुख की नदी को हाथ-पाँव मारते हुए

    पार तो कर लेती हूँ

    पर देह और मन जगह-जगह से छिल जाता है

    याद करने वाली स्मृतियों की बाड़

    इतनी गझिन है

    कि सुख के बीते पलों के प्रवेश के लिए

    राह ही नहीं बचती

    कह देने से मन हल्का नहीं होता

    बल्कि और भर जाता है

    आँसुओं के जमे हिमखंड भरभराकर फूट पड़ते हैं

    मन की मुँडेर पर एक पाँव से देर तक

    टिका नहीं रहा जा सकता

    दुख की तीखी धूप में

    कोस-कोस भर पैदल चलते हुए

    सुख की छाँव की आस पर

    बीत रहा है जीवन

    धीरे-धीरे बीत रही हूँ

    मैं भी समय की धार को काटते हुए

    स्रोत :
    • रचनाकार : शालिनी सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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