भीतरी इस कक्ष में कोई ऐसी वस्तु है
bhitari is kaksh mein koi aisi vastu hai
भीतरी इस कक्ष में कोई ऐसी वस्तु है,
जो नींद से भी बढ़कर शांत!
उसके वृक्ष पर एक टहनी है—
और वह बताती नहीं—क्या है उसका नाम।
कुछ उसे छूते है, और कुछ चूम लेते हैं—
कुछ उसके हाथों को सहलाते, जो स्थिर हैं—
उसमें एक सरल गंभीरता है,
जो मेरी समझ के बाहर है।
अगर मैं वह होती, जो वे हैं—रोती नहीं—
किसी का सिसकियाँ भरना अभद्र है कितना!
संभव है इससे वह शांत परी भयभीत
जंगल को भाग जाए जहाँ उसका घर अपना!
जब कि सरल-हृदय पड़ोसी
अल्पायु में मृत की बात करते हैं—
हम—जिनमें बातें घुमा कर कहने की आदत है,
पंछी उड़कर चले गए—कहते हैं!
- पुस्तक : एमिली डिकिन्सन की कविताएँ : संचयन (पृष्ठ 31)
- रचनाकार : एमिली डिकिन्सन
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
- संस्करण : 2011
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