Font by Mehr Nastaliq Web

भूख बनाम इश्तिहार

bhookh banam ishtihar

हिमांक

अन्य

अन्य

हिमांक

भूख बनाम इश्तिहार

हिमांक

और अधिकहिमांक

    वो ख़ूबसूरत थी

    किसी रंगीन पत्रिका की तरह

    पर उसकी आँखों में एक भूख थी

    भूख, जो ख़ूबसूरती के बावजूद

    देह को हाथ फैलाने पर मज़बूर कर दें

    वह किसी गँवार आदमी के

    साथ शहर आई होगी

    उसे शहर में जीने का सलीक़ा नहीं आता

    इसलिए उसने चुना, चुपचाप हाथ फैलाना

    मेट्रो टनल की सीढ़ियों पर

    सरकारी इमारतों के नीचे

    घनी आबादी वाली बस्तियों में

    राजधानी के चौराहों से लेकर

    आध्यात्मिक दरगाहों तक

    अंत में, उसे जब भरपेट

    अनाज नहीं मिला होगा

    तो उसने चुना,

    अपनी देह को फैलाना

    शहर की संकरी गली के

    किसी कोठे में

    उछलते शरीर के नीचे

    उसने चुना मर्द जात का

    पेट भरकर

    अपनी भूख मिटाना

    उसका जुर्म बस इतना था

    कि उसने नहीं पढ़ा

    बिके हुए अख़बारों और रंगीन पत्रिकाओं में

    बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के

    सरकारी इश्तिहार।

    क्योंकि वो किसी गँवार आदमी

    के साथ शहर आई थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हिमांक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY