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भाषा

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पल्लवी मंडल

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और अधिकपल्लवी मंडल

    लदा-पड़ा मिलता है

    शब्दों के संयोजन का साहित्य।

    बुद्धि को ठग रखा है भाषा की शुद्धता ने

    कभी विन्यास, कभी अलंकार

    तो कभी छंद लय

    या फिर ताल...!

    शब्दों के संयोजन में

    नहीं आती ऐसी बातें जो

    रही क्रांति बुझा दे

    इंसान के तमस को...!

    शुद्धता की ओट में छिपाई जा रही हैं

    आज के यथार्थ को

    टिसन गूँगी रहती हैं,

    दफ़न रहता है इसमें विषय-वस्तु

    या फिर उम्मीदों का विचार

    नहीं मिलता इसमें उम्मीदों का

    एक छोटा-सा भी राख

    नाउम्मीदी बेहद

    कितनी ज़्यादा उदासियाँ हैं

    इनके पास।

    लगता है यूँ जीवन में ख़त्म हो गईं हैं

    सभी आस...!

    कितने प्रश्न हैं सामाजिक

    जो सामने हैं नज़र की

    बख़ूबी जाना भी जाता है

    इन बातों को

    पर..!

    इनपर डलवा दिया जाता है मिट्टी,

    तोप दिया जाता है इन चीज़ों को

    क्योंकि वो जानते हैं मुद्दों से भटकाना,

    अदृश्य राह पर अस्तित्व को टाँग कर

    आत्मघात का मीठा ज़हर पिलाना...!!

    स्रोत :
    • रचनाकार : पल्लवी मंडल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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