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भरोसा

bharosa

शालिनी सिंह

अन्य

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और अधिकशालिनी सिंह

    उन्होंने ही किया सर्वाधिक दोहन भरोसे का

    जिनकी शिराओं में सभ्यताओं की रसोई का नमक घुला था

    पुरखों की कही ये सूक्ति स्मरण करती हूँ बार-बार

    पर उतार नहीं पाती इसका अंश भर भी जीवन में

    उम्र के इस पड़ाव पर जब हाथ ख़ाली हैं

    और मन भरा तब सोचती हूँ कि

    अपने समय का कितना हिस्सा अनगिन बार

    उन हित साधकों के लिए रसोई बनाने में गुज़ार दिया

    जो केवल अपने हित संधान के लिए आए थे

    जिनके चेहरे पर उमग आई

    विपन्नता को ठौर देकर

    उलझने अपने लिए ही बड़ाईं

    पर आश्वस्त रहा मन का हर कोना हमेशा लक़दक़

    भरोसे के जल से

    सींचती रही हित साधकों के हित

    मन के भीतर की छठी इंद्रिय भी

    ऐसे अवसरों पर सदा सुप्त रही

    जो सूँघ सकती हित साधने आए मीठी मुस्कान धारकों को

    हित साधकों के पृष्ठ में छिपी मंशा को

    भाँपने का चातुर्य हर किसी में नहीं होता

    स्वार्थ साधते लोग अपनी नम बोली

    मीठी मुस्कान से जमाते रहे पाँव अपने

    उन्हें खड़ा करने की जद्दोजहद में निष्ठा के साथ खड़ी रहीं

    और वह स्वावलंबी हो

    मेरे ही पाँव के नीचे से जड़े काटने लगे

    ईश्वर के दिए इतने समय में से

    उम्र का एक मनचीता हिस्सा चला गया इन हितसाधकों के हिस्से

    जिन पलों में हित साधकों के हित साधने का ज़रिया बनी रही

    ठीक उन्हीं पलों में कर सकती थी सृजन

    मन के भीतर और बाहर के आह्लाद से

    या बेफ़िक्री की एक लंबी नींद को

    बुला सकती थी आँखों में

    स्रोत :
    • रचनाकार : शालिनी सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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