भारत माँ के पवित्र दशांक

bharat man ke pawitra dashank

सुब्रह्मण्य भारती

सुब्रह्मण्य भारती

भारत माँ के पवित्र दशांक

सुब्रह्मण्य भारती

1. नामकरण

हरित वर्ण वाले प्रिय तोते! उस माता का नाम बता,

जिसने मुझ-से पापी को भी श्रेष्ठ योग का ज्ञान दिया।

पूर्ण ज्ञान का कीर्तिरूप दीपक जिसने प्रज्ज्वलित किया—

इस धरती पर भारतमाता ही वह माता है, तूगा।

2. देश

मृदुल कंठ वाले तोते! उस स्वर्ण देश का नाम बता,

देवी मेरे लिए जहाँ की बनी प्रकट आनंद समान।

नभचुंबी नगराज हिमालय से कन्याकुमारी तक—

फैला विस्तृत आर्य देश ही है वह देश, इसे तू जान।

3. नगर

तुतली वाणी वाले शुक! हम सबकी प्राणप्यारी माँ,

हम सबके क्षेमार्थ व्यस्त नित किस नगरी में रहती है?

प्राप्त अहं ब्रह्मास्मि ज्ञान को, योगी जहाँ विचरते हैं—

प्राणों से बढ़कर प्रिय काशी नगरी ही वह नगरी है।

4. नदी

अरे रँगीले तोते! वंदे माँ कहकर स्तुति करें अगर—

तो विनाश से बचा, क्षेमदायक सरिता है कौन कहो?

निज पथ पर सत्कार्य और सद्-धर्म, स्वर्ण उपजाने वाली,

गंगा यहाँ गगन से आई, उसका गुणगान करो।

5. पर्वत

हे वाटिकाविहारी तोते! इतना तो तू मुझे बता—

निज तनुजा को अंक समेटे, चतुर्वेदधारी गिरि कौन?

अद्वितीय जग के शृंगों में, सबसे उच्च गगनचुंबी।

कांतियुक्त द्युति धवल, हिमालय ही वह गिरि है देखो।

6. वाहन

तोते बता प्रमत्त शान में और परम ऐश्वर्य में पगी—

मातु हमारी किस वाहन पर चढ़कर मार्ग चला करती है

रथ पर अथवा अश्व पर नहीं, विश्व प्रंकपित करने वाले—

केहरि पर होकर आरुढ़ सदा पर्यटन किया करती है।

7. सेना

शुक रे! माता अति कृपालु है, फिर भी कभी कुपित होने पर,

शत्रु समूल संहार करे जो, उसकी वह वाहिनी कौन है?

केवल अपने दृष्टिपात से, निज प्रतिद्वंद्वी आक्रामक कर;

उसे समूच विनष्ट करे जो, ऐसा ही वह वज्रायुध है।

8. नगाड़ा

प्यारे तोते! निज माता के यहाँ सदा प्रशस्त आँगन में—

यह निनाद करता रहता है, मुझे बता कौन नगाड़ा?

सत्यवद, धर्मंचर ऐसे शब्दों से गुंजायमान जो—

जीव मुक्ति देने वाला वह वेदस्वरूप विशाल नगाड़ा।

9. माला

आओ! शुक! बतलाओ निज भक्तों को अतुलित सुख की दाता—

माता सदय, कंबु ग्रीवा में कौन माल धारण करती है?

रिपुओं से पार्थक्य, मात्र मुस्क्यान पसार, मिटाने वाली—

जननी, कनक कमल की माला पहन सदैव जगमगाती है।

10. पताका

मोती सदृश वर्ण वाले शुक! कह शत्रुता और अन्याय,

खंडित करने वाली माँ की कौन समुज्ज्वलविजय ध्वजा?

परिपालन हित शिष्ट जनों के, दुष्ट जनों के निग्रह हित—

वज्र सदृश जाज्वल्यमान जो ध्वजा, वही वह अटल ध्वजा।

स्रोत :
  • पुस्तक : राष्ट्रीय कविताएँ एवं पांचाली शपथम् (पृष्ठ 51)
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक एन. सुंदरम् और विश्वनाथ सिंह 'विश्वासी'
  • प्रकाशन : ग्रंथ सदन प्रकाशन
  • संस्करण : 2007
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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