बेतरतीब बातें, बेतरतीब ज़िंदगी

betartib baten, betartib zindagi

ऋतेश कुमार

ऋतेश कुमार

बेतरतीब बातें, बेतरतीब ज़िंदगी

ऋतेश कुमार

उस खिड़की से हवा आती थी

धूप आती थी

झीसी फुहार

गौरैया और मैना

झाँकता थे आम पीपल

गाय बकरी के छौना

दूर से चाँद

और पास से तुम

दिखते थे खिड़की से बाहर की दुनिया के

सब करतब

खेल-तमाशे बच्चों के

बहस, झगड़े-झंझट फ़ुरसतियों के

तेज़ आवा-जाही काम-काजी क़दमों के

तूफ़ान, आँधी

तीज-त्योहार पूजा-पर्व

और सखियों के साथ गुज़रती तुम

रात नींद में

उस खिड़की से मैं चला जाता था

आजी की कहानियों में

या उन कहानियों की जादूगरनियाँ

चली आती थीं कमरे में

और पीछे से तुम भी

ज़िंदगी सुकून थी

खिड़की अब भी खुली है

बाहर उदासी गहरी है

डूबने का ख़तरा है

आँखें बंद करता हूँ

पर नींद है कि जैसे ले रही है

बदला ज़माने भर के बलवे का

जाने कब से सोया नहीं हूँ

जाने कब से तुमसे मिला नहीं हूँ

बड़ी बेचैन है ज़िंदगी

जाने कब तक बीतेगी ये ज़िंदगी

स्रोत :
  • रचनाकार : ऋतेश कुमार
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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