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एक धुन

ek dhun

आशीष त्रिपाठी

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और अधिकआशीष त्रिपाठी

    एक धुन

    मेरे भीतर मचल रही है

    बरसों पहले सुनी

    इधर बिसर-सी गई

    उस धुन को

    गाते हुए

    मेरे भीतर

    ओस की तरह

    गिर रही है

    अतीत की एक फाँक

    धीरे-धीरे

    एक दिन आधा बीता

    आज लेकर आया है

    अपने साथ

    आधा अनबीता

    उस आधे दिन

    बातों बातों में

    लगभग राख हो चुकी चाय

    पी जा रही है आज

    चुस्कियाँ लेकर

    एक फूल का रंग

    उस अनबीते से निकलकर

    आज मेरे भीतर

    ठंड की धूप की तरह गुनगुना रहा है

    स्मृतियों के पेड़ के नीचे पसरी छाया

    इस धुन की धीमी हवा से

    नाच-सी रही है मन की धरती पर

    एक धुन मेरे भीतर मचल रही है

    स्रोत :
    • रचनाकार : आशीष त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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