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बताओ ना शहर?

batao na shahr?

ऋतु त्यागी

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ऋतु त्यागी

बताओ ना शहर?

ऋतु त्यागी

और अधिकऋतु त्यागी

    मेरा शहर आजकल गाँवों को फलाँगता जा रहा है

    अपनी सड़कों की लंबाई-चौड़ाई में मशग़ूल है

    मुझसे बातें भी कम करता है...

    व्यस्त है अपने चौराहों की लाल बत्ती पर,

    खड़े ट्रैफ़िक में लोग

    यहाँ अपने वाहनों का शोर छोड़ जाते हैं उसके लिए

    इनकी उदासी को शहर ना जाने क्यों पकड़ नहीं पाता

    चमकीली ऊँघती दौड़ में

    मेरे शहर क्या तुम्हें याद है?

    प्रेम में पड़े उस लड़के की ख़ुदकुशी

    जो पात्र को प्रेम समझ बैठा

    और उस लड़की की भी

    जो प्रेम के ‘म’ को पकड़कर खींचती रही

    और आख़िर उसने पंखे पर लटक कर ‘म’ को वहीं छोड़कर चली गई

    मैं धूप में बैठी अख़बार की इन ख़बरों को कुतर रही हूँ

    मेरे शहर क्या तेरी संवेदनहीनता ने मुझे भी जकड़ लिया है?

    बताओ ना शहर!

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऋतु त्यागी
    • प्रकाशन : हिंदवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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