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बस्ता

basta

अनुवाद : ज्ञान सिंह

पद्मदेव सिंह निर्दोष

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और अधिकपद्मदेव सिंह निर्दोष

    यह मैला-कुचैला मेरा बस्ता

    महँगा है या है यह सस्ता

    इतनी बात तो मैं ही जानूँ।

    भ्रम जो आपकी आँखों का है

    देख नहीं हूँ मैं घबराया

    इतना भी अनजान नहीं हूँ।

    तुम समझे हो बस्ते में है

    जादू-जड़ियों का सामान

    सोच तुम्हारी ठीक है लगती

    मंदिर का मैं महंत नहीं हूँ

    या कोई बढ़िया संत नहीं हूँ

    गोरी का मैं कंत नहीं हूँ

    मैं तो इक रमता योगी

    हर इक रोग का मैं हूँ रोगी

    हर प्रकार का जीवन भोगी

    पर आँख मेरी यह चौकस है

    जब कोई बात मुझे भाए

    हो जाता हूँ मैं बात-बवंडर

    किसी को पल्ले बाँधू

    करने लगता हूँ मैं निंदा

    झट से फिर मैं खोल के बस्ता

    यह है महँगा या है सस्ता।

    हर किसी का रोष मथकर

    पहुँचूँ मैं आकाश के भीतर

    रोग किसी को ला के रख दूँ

    सोया दर्द जगा के रख दूँ।

    मेरा हुलिया देख सभी पहचानें मुझको

    आँके वे बेईमान मुझे, समझें महमां अपना

    शायद उनकी चीज़ अमूल्य ले आया मैं बस्ते में

    पौ फटते ही कौन-से रस्ते, कौन गली में

    जा के समा जाऊँ फिर मैं

    रोग किसी को ला के रख दूँ,

    सोया दर्द जगा जाऊँ

    अंबर पर हैं जितने तारे

    रिश्ते के हैं मेरे सारे

    बँध रहे क्यों झूठा ढाढ़स

    चंदा को बतला आऊँ, उनकी चुगली कर आऊँ।

    पर चंदा का है क्या भरोसा

    उलटा कर ले मुझ पे ग़ुस्सा

    कि बस इतनी बात पे ही

    आया इतनी दूर से है तू

    और नहीं कोई पश्चात्ताप

    मैं पश्चात्ताप का खोल के बस्ता

    यह है महँगा या है सस्ता

    उसमें से इक पश्चात्ताप रखा झट चंदा के पास

    देख उसे वह घबराया, फिर मुस्काया वो

    बस इस पश्चात्ताप की ख़ातिर,

    चल कर आया 'अखनूर' से तू

    ले यह पश्चात्ताप का बस्ता

    यह है महँगा या है सस्ता

    मैंने चंदा को घूर के देखा

    डाली जिसने मुझे भिक्षा।

    सुन ले तू मेरे चंदा

    क्यों भला मैं तेरी मानूँ

    तूने कब है मेरी मानी

    उलटे मारे पत्थर कंकड़

    देख के यह पत्थर का ढेर

    देख के अंतर का अँधेर

    सोच-सोच के पाए फेर

    यही ढेर मेरा सरमाया

    तू तो चंदा हुआ पराया।

    ले यह पश्चात्ताप का बस्ता

    यह है महँगा या है सस्ता

    तेरे बिन मेरे चंदा

    इस बस्ते को मैं क्या मानूँ

    करता है यह तो मनमानी

    अब मुझसे उठाया जाए

    पश्चात्ताप से भरा यह बस्ता

    वो है महँगा या है सस्ता।

    फिर भी इसको पड़े उठाना

    सच पूछो तो इसके भीतर

    यादों के हैं कितने मंदिर

    एक ही मूर्ति इसके अंदर

    यह है पश्चात्ताप का बस्ता

    यह है महँगा यह है सस्ता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 198)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : पद्मदेव सिंह निर्दोष
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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