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बरसात सुहानी

barsat suhani

अनुवाद : ज्ञान सिंह

रामलाल शर्मा

रामलाल शर्मा

बरसात सुहानी

रामलाल शर्मा

वर्षा ऋतु सुहानी है, धरती की भाग्य निशानी है

लहर यह जीवन सागर की है कौन कहे यह पानी है।

आज है अंबर खेल मदारी समय अनोखा बाँध रहा

धूप कड़ाके की जहाँ तो वहाँ है गर्ज और गड़क रहा

कानी कज्जल डाल रही है कण-कण है हर्षाया

कलियों ने घूँघट खोले मन भ्रमरा भरमाया

अंबर पे सतरंगा झूला लेता प्रेम हिलोरे

इसीलिए थे राड़े बोए, पौध नई अब लानी है

वर्षा ऋतु सुहानी है....

ये चर्चे झूले झूँटों के और कज्जल-बिंदिया चूड़ों के

ये खीर प्रेमी रांध रहे और थाल भरे हैं पूड़ों के

भेद खुलेंगे रंगों के ये कच्चे-पक्के गाढ़ों के

बाग़ बने अब सब्ज ग़लीचे कल जो ढेर थे कूड़ों के

उचकें लोटन धरती पर अब बाल उठाए ढाँकों पर

चर्चा टूटे तागे का क्या जोड़ी इसने तानी है

वर्षा ऋतु सुहानी है...

खिली है मेहनत माटी से हर खेत है दिखता झूल रहा

सीना ताना कृषकों ने है बाजू-बाजू फूल रहा

कोमल घास की बरक़त देखो अब दूध थनों से टपक रहा

पर्वत शिखरों पर जो झाँकों गहरा बादल घुमड़ रहा

देख के मस्त फुहारों को घर जाना सबको भूल गया

झरनों के सुर-ताल अनोखे, नद पर चढ़ी जवानी है

वर्षा ऋतु सुहानी है...

यह चंदा है पगलाया कैसा, धन से झाँकी मार रहा

फ़र-फ़र बहती तेज़ हवा का, हर इक झोका ठार रहा

उस पर पड़ता कानों में जब छेड़ा प्रेम तराना

प्रेमी का मन बूझे उसको, जाने पता ठिकाना

यह सावन इसको जीत रहा तो सावन उससे हार रहा

गीत सुहाना जीवन का यह, बीती एक कहानी है

वर्षा ऋतु सुहानी है, धरती की भाग्य निशानी है

लहर यह जीवन सागर की है, कौन कहे यह पानी है।

कानी : धूप खिले होने के साथ बारिश का बरसना और दूसरी ओर छाया रहना।

झूला : इंद्रधनुष

राड़े : बीज की परीक्षा संबंधी एक त्योहार जो सावन मास में मनाया जाता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 196)
  • संपादक : ओम गोस्वामी
  • रचनाकार : रामलाल शर्मा
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

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