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बारिश और नानी का गाँव

barish aur nani ka ganw

नरेन सहाय

अन्य

अन्य

नरेन सहाय

बारिश और नानी का गाँव

नरेन सहाय

और अधिकनरेन सहाय

    माँ का गुलाबी बक्सा

    उस पर लगा आसमानी ताला

    दोनों चले जा रहे थे आगे सरपट

    पीछे छूटता जा रहा था आसमान और मैं

    आसमान जादुई था

    और मैं जादू के पीछे भागने वाला विस्मय बच्चा

    इसका अंदेशा, माँ को हमेशा रहता सफ़र में।

    माँ और मेरी दूरी नाल की तरह जुड़ी थी

    उसे पता लग जाता, मेरे रुक जाने का

    फिर वह आवाज़ देके टेर लेती—

    ऐसा पूरे सफ़र में 8 से 10 बार रहा होगा

    फिर मैं, दादा और माँ के बीच चलने लग जाता।

    40 कोस की यात्रा में

    बक्सा आधे रास्ते माँ के सिर पर

    आधे रास्ते दादा के सिर पर चलता रहा।

    हरा डोलचु आगे-पीछे चलने के बाद

    एक दो बार मेरे हाथ में भी जाता।

    पूरे रास्ते माँ दादा के पीछे चल रही होती

    दादा रास्तों के ऐसे जानकार जान पड़ते जैसे

    उनके ही पुरखों ने इन्हें काड़ा हो,

    आदिम यात्रा के लिए

    हर रास्ता, हर पहाड़, हर झरना और हर नदी की

    वे अपनी ही कहानी सुना रहे होते

    मैं कान लगाकर सुन रहा होता

    शायद माँ भी कुछ-कुछ सुन रही होती

    उन सुंदर कहानियों को।

    इस बीच कलेवा और छुटपुट सिंगार की चीज़ों

    (माहुर, तकता, कंघा और पाउडर) से भरा

    हरा डोलचु, कभी मेरे हाथ में रहता तो

    माँ के हाथ में इस तरह हाथोहाथ

    घूमता रहा हरा डोलचु,

    हरे रास्ते की तरह

    नानी गाँव

    40 कोस दूर था सड़क वाले रास्ते से

    लेकिन हर बारिश में नदी पर बना पुल डूब जाता

    आने-जाने वाली दोनों बसें बंद हो जातीं

    दादा के साथ नानी के गाँव के लिए

    सफ़र रोमांचकारी था

    जो आज भी स्मृतियों में

    जीवित आकाशगंगा-सा तैर रहा है

    जंगल-पहाड़-तालाब पार करते हुए

    काले, स्लेटी, भूरे, नीले और गुलाबी बादल

    इस तरह साथ रहे जैसे समूची पृथ्वी ने

    उन्हें बुलाया हो बरसने के लिए

    काले बादलों के दर से

    चिड़ियों मधुमक्खियों और चींटियों का झुंड

    अपने-अपने घरों की तरफ़ लौट रहा था

    जैसे माँ लौट रही थी नानी गाँव।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नरेन सहाय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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