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मुलाक़ात न हो

mulaqat na ho

सुभाष मुखोपाध्याय

अन्य

अन्य

सुभाष मुखोपाध्याय

मुलाक़ात न हो

सुभाष मुखोपाध्याय

और अधिकसुभाष मुखोपाध्याय

     

    जहाँ 
    आसमान की मोतियाबिंद वाली काली आँखों के नीचे 
    तीन सिरों को एक साथ जोड़कर 
    हाथ में लाठी थामे खड़ा है 
    अँधकार

    जहाँ तमाम रात 
    और सारे दिन 
    टुप टाप... 
    टुप टाप... 
    ज़मीन पर पत्ते के नीचे 
    गिरने की आवाज़ 
    जहाँ स्टीमर के ख़लासी की तरह 
    यादें 
    सिर्फ़ रस्सी फेंक-फेंक कर 
    मापती रहीं।

    मुझे मालूम है 
    कि सर्दियों की चिलचिलाती ठंड 
    एक दिन मुझे भी 
    उसी ओर 
    ठेल देगी

    ओ वसुंधरा 
    है मेरी इच्छा 
    कि मैं उस दिन का चेहरा
    न देख पाऊँ।

    बल्कि ऐसा होने से पहले 
    तुम मेरी दोनों आँखें 
    बाँध लेना 
    अपने पाँवों में 
    घुँघरुओं की तरह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चाहे जितनी दूर जाऊँ (पृष्ठ 27)
    • रचनाकार : सुभाष मुखोपाध्याय
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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