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बख़्तियार ख़िलजी की बीवियाँ

bakhtiyar khilji ki biwiyan

श्रीविलास सिंह

अन्य

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श्रीविलास सिंह

बख़्तियार ख़िलजी की बीवियाँ

श्रीविलास सिंह

और अधिकश्रीविलास सिंह

    ज़रूर रही होंगी

    पढ़ी लिखी

    बख़्तियार ख़िलजी की बीवियाँ

    और उड़ाती रही होंगी

    मज़ाक़ उसकी निरक्षरता का

    अक्सर,

    और क्रूर सेनापति

    मन ही मन पालता रहा होगा द्वेष—

    शिक्षा और ज्ञान के विरुद्ध।

    उनमें से किसी ने

    ज़रूर लिखा होगा

    कभी कोई प्रेम-पत्र

    उसके नाम और

    जिसे पढ़ पाने की झुंझलाहट ने

    भर दिया होगा उसे कुंठा से।

    या फिर किसी बीवी ने

    लिखी होगी

    प्रेम की कोई कविता

    जो कि अक्सर होती हैं

    तानाशाही के ख़िलाफ़

    और एक दिन

    भाग गई होगी

    अपने आज़ाद-ख़याल प्रेमी के साथ,

    जिसका सिर बाद में

    लटका मिला होगा

    किसी अँधेरे क़िले की

    दीवार से उठेंगे

    भाले की नोक पर

    और अभागी बीवी

    नुचवा दी गई होगी

    भूखे कुत्तों से।

    पर उसकी लिखी कविताएँ

    गूँजती महल के दालानों में

    याद दिलाती रही होंगी

    तानाशाह को

    कि वह है अनपढ़,

    अक्षर-ज्ञान से शून्य

    एक जानवर मात्र

    और अज्ञान के सारे

    महिमा-मंडन के बावजूद

    ज्ञान की श्रेष्ठता के आलोक से

    चौंधिया जाती रही होंगी

    उसके तमाच्छादित

    मस्तिष्क के काली खोहें।

    अज्ञानता की इसी खीझ और कुंठा में

    एक दिन जला डाली उसने

    नालंदा की संचित,

    विपुल ज्ञानराशि।

    मूर्ख ने सोचा होगा

    समाप्त हो जाता है ज्ञान

    आग में जलकर

    और कविता मर जाती है

    डरकर

    किसी तानाशाह से।

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीविलास सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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