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बचना

bachna

अनुराग अनंत

अन्य

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और अधिकअनुराग अनंत

    मुझे शर्म आती है यह कहते हुए

    जब सब ख़त्म हो रहा था

    मैं बच गया

    जैसे थाली में जूठन बच जाती है

    जबकि मैं चाहता था अगर बचना ही नियति है

    तो मैं तुम्हारी स्मृति में कबूतर के पंख की तरह बचूँ

    तुम्हारे जीवन में बचपन की तरह

    तुम्हारे बुढ़ापे में जीने की अभिलाषा की तरह बचूँ

    मैं जीवन भर बचने से बचता रहा

    और त्रासदी यह कि

    आख़िरी में मैं ही बचता रहा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराग अनंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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