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औरतें

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रामजी तिवारी

अन्य

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और अधिकरामजी तिवारी

    हम पुरुषों को

    स्त्रियाँ ही देती हैं आकार,

    उन्हीं की नज़रों में चढ़कर हम पैदा होते हैं

    आदमी के रूप में पहली बार।

    हमारे भीतर उतरकर

    साफ़ करती हैं वे जालों को,

    जहाँ से हम अब तक चलते रहे हैं

    पशुओं जैसी चालों को।

    ‘हम आदमी हैं’ वाला सम्मान

    हमने तब सुना था,

    जब स्कूल में शाम ढलने पर

    उस अनबोली सहपाठिन ने घर छोड़ने के लिए

    तमाम परिचितों के बीच से हमें चुना था।

    जब ट्रेन की सहयात्री साथिन ने

    देखा था मुझमें अपना भाई,

    और बस की अनजानी साथिन ने

    बग़ल की सीट पर आराम से यात्रा कर

    दी थी मुझे बधाई।

    जब मेरी भार्या

    मेरे हर उठे हुए हाथ पर मुस्कुराती है,

    यह सिजदा या आमंत्रण में होगा

    सोचकर शर्माती है।

    सच मानिए

    मैं इसलिए नहीं पखारता

    विदा होती बहन के पैरों को

    कि बचा रहे मेरा वैभव,

    वरन इसलिए कि उसे छूकर

    मैं पवित्र करता हूँ अपना गौरव।

    फिर वे कौन हैं

    जो आदमी बनने के लिए

    स्त्रियों से दूर भागा करते हैं,

    क्या वे अपने भीतर की पशुता से

    इतना डरते हैं...?

    उन्हें बताइए कि सफ़ाई पसंद होती हैं औरतें

    रखतीं चौकस हमेशा नज़रें,

    कौन जानता है भला उनसे बेहतर

    गंदगी के होते कितने ख़तरे।

    तभी तो लगाता हूँ

    उनसे मैं गुहार,

    कि आओ मेरी साथिनों

    मुझे आदमी बनाओ

    तुमसे है मनुहार।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामजी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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